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#4. जीवित और मृत भूमि: वास्तु के अनुसार शुभ और अशुभ भूमि का चयन
"वास्तु शास्त्र में भूमि का सही चुनाव आपके जीवन को सुख-समृद्धि या विपत्तियों से भर सकता है। जानिए, कौन सी भूमि जीवित मानी जाती है और कौन सी मृत, और कैसे ये आपके धन, परिवार और जीवन पर असर डालती हैं। पढ़ें पूरा लेख और सही भूमि का चयन करें।"
Vastu Consultant: RishabhDev Jain
9/5/20241 min read
जीवित और मृत भूमि: वास्तु के अनुसार शुभ और अशुभ भूमि का चयन
वास्तु शास्त्र में भूमि का विशेष महत्व है, और यह माना जाता है कि भूमि का प्रकार हमारे जीवन में सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। जिस भूमि पर हरे-भरे वृक्ष, पौधे, घास आदि हों और जिसकी खेती से अच्छी उपज मिलती हो, ऐसी भूमि को वास्तु के अनुसार 'जीवित भूमि' माना जाता है। यह भूमि शुभ फलदायक होती है और समृद्धि एवं सुख-शांति का प्रतीक मानी जाती है।
इसके विपरीत, ऊसर भूमि, चूहों के बिल, बांबी (दीमक के घर), उबड़-खाबड़, कांटेदार पौधों और वृक्षों वाली भूमि को 'मृत भूमि' के रूप में जाना जाता है। ऐसी भूमि त्याज्य मानी गई है और इसे खरीदने या उस पर निर्माण करने से बचना चाहिए।
वास्तु शास्त्र में विभिन्न प्रकार की मृत भूमि के परिणाम इस प्रकार बताए गए हैं:
- ऊसर भूमि: यह भूमि धन का नाश करने वाली मानी जाती है।
- चूहों के बिल वाली भूमि: यह भूमि आर्थिक नुकसान का कारण बनती है।
- बांबी (दीमक) वाली भूमि: ऐसी भूमि पुत्र हानि का संकेत देती है।
- फटी हुई भूमि: यह भूमि मृत्यु का संकेत देती है।
- हड्डियों से युक्त भूमि: ऐसी भूमि परिवार में कलह का कारण बनती है।
- ऊंची-नीची भूमि: यह शत्रु बढ़ाने वाली होती है।
- गड्ढों वाली भूमि: विनाशकारी मानी जाती है।
- टीलों वाली भूमि: यह कुल में विपत्तियां लाने वाली होती है।
- दुर्गंध युक्त भूमि: पुत्र हानि का कारण मानी जाती है।
भूमि का सही चुनाव हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाने में सहायक हो सकता है। इसलिए, भूमि का चयन करते समय इन वास्तु सिद्धांतों का ध्यान रखना आवश्यक है।
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