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#11. दिवाली 2024: महत्त्व, विधियाँ और जैन परंपराएँ एक समृद्ध त्यौहार के लिए
दिवाली 2024: जानें इस त्योहार का महत्व, धन्यतेरस की असली परंपरा, और जैन धर्म के अनुसार कैसे भगवान महावीर के निर्वाण और गौतम गणधर के केवलज्ञान की प्राप्ति को मनाया जाता है।
Vastu Consultant: RishabhDev Jain
10/17/20241 min read


दिवाली 2024: महत्त्व, विधियाँ और जैन परंपराएँ एक समृद्ध त्यौहार के लिए
दिवाली भारत का सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय त्योहारों में से एक है, जिसे प्रकाश पर्व भी कहा जाता है। यह त्यौहार आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दोनों रूपों में महत्वपूर्ण है। जहां हिंदू भगवान श्री राम के अयोध्या लौटने पर दीप जलाकर उनका स्वागत करते हैं, वहीं जैन धर्म के अनुयायी इसे भगवान महावीर के मोक्ष प्राप्ति के दिन के रूप में मनाते हैं। इस ब्लॉग में हम दिवाली 2024 के महत्व, इसके पीछे की परंपराओं, और खासतौर पर धन्यतेरस के दिन से जुड़े जैन धर्म के अद्वितीय अनुष्ठानों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
धन्यतेरस का सही अर्थ और भगवान महावीर का महत्त्व
धनतेरस, जिसे आजकल ज्यादातर लोग संपत्ति और धन के प्रतीक के रूप में मानते हैं, असल में धन्यतेरस है। जैन परंपरा के अनुसार, इसी दिन भगवान महावीर पावापुरी में मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर थे। यह दिन धन्य यानी शुभ और पवित्र माना जाता है। इस दिन की पवित्रता को और बढ़ाने के लिए, अपने घर, दफ्तर, या फैक्ट्री के दक्षिण-पूर्वी कोने में घी का दीया जलाएं। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और उस स्थान पर सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
भगवान श्रीराम और दीयों का महत्त्व
हिंदू धर्म में, दिवाली का त्यौहार भगवान राम के अयोध्या लौटने की याद में मनाया जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान राम 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो अयोध्या की जनता ने अमावस्या की अंधेरी रात को रोशन करने के लिए दीप जलाए। उसी दिन से दिवाली के मौके पर घरों को दीपों से सजाने की परंपरा चली आ रही है।
जैन धर्म में दिवाली का महत्त्व: भगवान महावीर का निर्वाण और केवली ज्ञान
जैन धर्म के अनुसार, भगवान महावीर को इसी दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इस दिन को भगवान महावीर निर्वाणोत्सव के रूप में मनाया जाता है। जैन अनुयायी इस दिन मंदिरों में निर्वाण लड्डू का प्रसाद चढ़ाते हैं। इसके अलावा, भगवान महावीर के पहले शिष्य गौतम गणधर को भी इसी दिन शाम के समय केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इस उपलब्धि की खुशी में रात को दीप जलाए जाते हैं।
दिवाली पर जैन पूजा विधि और पारंपरिक अनुष्ठान
दिवाली के दिन जैन अनुयायी विशेष पूजा और अनुष्ठान करते हैं। इसके लिए शुद्ध और नए कपड़े पहनकर, अष्ट द्रव्य थाली के साथ पश्चिम दीवार पर स्वस्तिक, श्री, श्री वीतरागाय नमः, श्री महावीराय नमः, श्री गौतम गणधराय नमः, श्री केवल ज्ञान महालक्ष्माय नमः जैसे पवित्र मंत्रों को गाय के घी और सिंदूर से लिखा जाता है। इसके नीचे श्री शुभ, श्री लाभ और श्री पर्वत भी लिखा जाता है। यह सब नाभि से ऊँचाई पर बनाया जाता है।
मंगल कलश और दीपक का महत्त्व
इसके बाद, एक मंगल कलश जिसमें पीली सरसों और अन्य शुभ सामग्री (जैसे चांदी का स्वस्तिक, हल्दी की गांठें, सुपारी) रखी जाती है, उसे उत्तर-पूर्व दिशा में रखा जाता है। एक घी का दीया दक्षिण-पूर्व कोने में जलाया जाता है। इस दौरान भगवान महावीर और अन्य धार्मिक ग्रंथों की मूर्तियाँ भी रखी जाती हैं। पूजा के बाद 16 दीपकों को चार दिशाओं में बत्तियों के साथ रखा जाता है, जिन्हें अनंत चतुष्टय से जोड़ा जाता है। यह 16 दीपक सोलह करण भावना को दर्शाते हैं, और 64 रिद्धियों का प्रतीक माने जाते हैं। इसके बाद, इन दीपकों को घर के हर कोने में रखा जाता है और पाँच दीपक स्थानीय मंदिर में भी अर्पित किए जाते हैं।
विधिवत पूजा और शुभ मुहूर्त
पूजा और अन्य सभी अनुष्ठान शुभ मुहूर्त, स्थिर लग्न, गौधूलि बेला, और अच्छे चौघड़िया मुहूर्त में किए जाते हैं। पूजा के बाद, घर के सभी मशीनों या यंत्रों पर गाय के घी और सिंदूर से स्वस्तिक बनाया जाता है। इसके अलावा, धन प्राप्ति के लिए धन प्राप्ति छत्तीस यंत्र और स्वस्तिक यंत्र पश्चिम दीवार पर बनाया जाता है, जिसमें सभी संख्याएं हिंदी में लिखी जाती हैं। पूजा के बाद शंख या घंटी बजाई जाती है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
फटाखों से परहेज और अन्य विशेष अनुष्ठान
फटाखों से बचना चाहिए क्योंकि यह सकारात्मक ऊर्जा को नकारात्मक ऊर्जा में बदलते हैं। इसके स्थान पर घर के प्रवेश द्वार पर 24 आम के पत्तों की तोरण लगानी चाहिए, जिसमें हर पत्ते पर केसर से स्वस्तिक बनाया गया हो। इसके साथ ही पांच पोटलियाँ (पीली सरसों की) भी लटकानी चाहिए, जो सकारात्मक ऊर्जा को और अधिक बढ़ाती हैं।
दिवाली की रात मंत्रोच्चारण का महत्त्व
दिवाली की रात को विभिन्न मंत्रों का जाप करना अत्यंत लाभकारी होता है। यदि आप धन और समृद्धि की कामना करते हैं, तो लाल वस्त्र पहनकर मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। इससे धन और संपत्ति की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष
दिवाली 2024 सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिवाली, पारंपरिक अनुष्ठानों का पालन करके और सही तरीके से पूजा करके, आप नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकते हैं और अपने घर, ऑफिस या व्यापार में सकारात्मकता और उन्नति को आमंत्रित कर सकते हैं। खासतौर पर, जैन धर्म के अनुयायी भगवान महावीर के निर्वाण और गौतम गणधर के केवलज्ञान की प्राप्ति का उत्सव मनाते हैं। इस दिन किए गए पवित्र अनुष्ठान जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाते हैं।
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